यूं तो हिन्दु धर्म में 32000 करोड़ देवी देवता हैं जिनके बारे में बता पाना सम्भव नहीं है और सबकी पुजा अर्चना करना भी सम्भव नहीं, उनमें से कुछ प्रमुख विख्यात देवी देवता की इस लोक में पूजन होता है |ऐसॆॆ ही एक विश्व विख्यात सुप्रसिद्ध देवी के बारे में इस अध्याय में पढ़ेगे |
मां मनसा देवी : जब भी माँ मनसा की बातें होती हैं तो यही कहा जाता है कि माँ मनसा भगवान शिव की पुत्री है किन्तु अब तक आपने बस यही सुना होगा कि भोलेनाथ और देवी पार्वती के तो सिर्फ़ बेटे है जो कि कर्तिके और गनेश हैं | फ़िर मां मनसा का माता गौरी ने उनको अपने कोख से जन्म दिया था?
आइये इस अध्याय मे आज मा मनसा के बारे मे बारिकी से जानने की कोशिश करते हैं |
मनसा देवी को मुख्यत: भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में पूजा जाता है। इनका जन्म मस्तक से हुआ है इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा। इनके पति जगत्कारु तथा पुत्र आस्तिक जी हैं। इन्हें नागराज वासुकी की बहन के रूप में पूजा जाता है, प्रसिद्ध मंदिर एक शक्तिपीठ पर हरिद्वार में स्थापित है। इन्हें शिव की मानस पुत्री माना जाता है परंतु ऐसा भी बताया गया है कि कई पुरातन धार्मिक ग्रंथों में इनका जन्म कश्यप के मस्तक से हुआ हैं, । कुछ ग्रंथों में लिखा है कि वासुकि नाग द्वारा बहन की इच्छा करने पर शिव नें उन्हें इसी कन्या का भेंट दिया और वासुकि इस कन्या के तेज को न सह सका और नागलोक में जाकर पोषण के लिये तपस्वी हलाहल को दे दिया। इसी मनसा नामक कन्या की रक्षा के लिये हलाहल नें प्राण त्यागा।
आदिकाल में मूलतः आदिवासी देवी मनसा का पूजन निम्न वर्ग के लोग करते थे ,परंतु धीरे धीरे इनकी मान्यता भारत में फैल गई। उनके मंदिर की पूजा मूल रूप से आदिवासी करते थे पर धीरे धीरे उनके मंदिरों को अन्य दैवीय मंदिरों के साथ किया गया।
प्राचीन ग्रीस में भी मनसा नामक देवी का प्रसंग आता है। इन्हें कश्यप की पुत्री तथा नागमाता के रूप में माना जाता था तथा साथ ही शिव पुत्री, विष की देवी के रूप में भी माना जाता है।
14 वी सदी के बाद इन्हे शिव के परिवार की तरह मंदिरों में आत्मसात किया गया। यह मान्यता भी प्रचलित है कि इन्होने शिव को हलाहल विष; के पान के बाद बचाया था, परंतु यह भी कहा जाता है कि मनसा का जन्म समुद्र मंथन के बाद हुआ।
विष की देवी के रूप में इनकी पूजा बंगाल क्षेत्र में होती थी और अंत में शैव मुख्यधारा तथा हिन्दू धर्म के ब्राह्मण परंपरा में इन्हें मान लिया गया। इनके सात नामों के जाप से सर्प का भय नहीं रहता। ये नाम इस प्रकार है जरत्कारू, जगतगौरी, मनसा, सियोगिनी, वैष्णवी, नागभगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जगतकारुप्रिया, आस्तिकमाता और विषहरी।
आगे माता की बनावट रूप का वर्णन किया गया है |
स्वरूप :-
मुख्यत: सर्पों से आच्छादित तथा कमल पर विराजित हैं 7 नाग उनके रक्षण में सदैव विद्यमान हैं। कई बार देवी के चित्रों तथा भित्ति चित्रों में उन्हें एक बालक के साथ दिखाया गया है जिसे वे गोद में लिये हैं, वह बालक देवी का पुत्र आस्तिक है।
द्वापर युग का उपाख्यान :- महाभारत पाण्डुवंश में पाण्डवों में से एक धनुर्धारी अर्जुन और उनकी द्वितीय पत्नि सुभद्रा जो श्री कृष्ण की बहन हैं, उनके पुत्र अभिमन्यु हुआ जो महाभारत के युद्ध में मारा गया। अभिमन्यु का पुत्र परीक्षित हुआ, जिसकी मृत्यु तक्षक सर्प के काटने से हुई। परीक्षित पुत्र जन्मेपजय ने अपने छ: भाइयों के साथ प्रतिशोध में सर्प जाति के विनाश के लिये सर्पेष्ठी यज्ञ किया। वासुकी ने अपनी बहन मनसा का विवाह किया तथा उसके पुत्र आस्तिक नें सर्पों को यज्ञ से बचाया।
राजा युधिष्ठिर ने भी माता मानसा की पूजा की थी जिसके फल स्वरूप वह महाभारत के युद्ध में विजयी हुए। जहाँ युधिष्ठिर ने पूजन किया वहाँ सालवन गाँव में भव्य मंदिर का निर्माण हुआ।
मुख्यत: सर्पों से आच्छादित तथा कमल पर विराजित हैं 7 नाग उनके रक्षण में सदैव विद्यमान हैं। कई बार देवी के चित्रों तथा भित्ति चित्रों में उन्हें एक बालक के साथ दिखाया गया है जिसे वे गोद में लिये हैं, वह बालक देवी का पुत्र आस्तिक है।
द्वापर युग का उपाख्यान :- महाभारत पाण्डुवंश में पाण्डवों में से एक धनुर्धारी अर्जुन और उनकी द्वितीय पत्नि सुभद्रा जो श्री कृष्ण की बहन हैं, उनके पुत्र अभिमन्यु हुआ जो महाभारत के युद्ध में मारा गया। अभिमन्यु का पुत्र परीक्षित हुआ, जिसकी मृत्यु तक्षक सर्प के काटने से हुई। परीक्षित पुत्र जन्मेपजय ने अपने छ: भाइयों के साथ प्रतिशोध में सर्प जाति के विनाश के लिये सर्पेष्ठी यज्ञ किया। वासुकी ने अपनी बहन मनसा का विवाह किया तथा उसके पुत्र आस्तिक नें सर्पों को यज्ञ से बचाया।
राजा युधिष्ठिर ने भी माता मानसा की पूजा की थी जिसके फल स्वरूप वह महाभारत के युद्ध में विजयी हुए। जहाँ युधिष्ठिर ने पूजन किया वहाँ सालवन गाँव में भव्य मंदिर का निर्माण हुआ।
अलग अलग पुराणों में मनसा की अलग अलग किंवदंती है। पुराणों में बताया गया है कि इनका जन्म कश्यप के मस्तिष्क से हुआ तथा मनसा किसी भी विष से अधिक शक्तिशाली थी इसलिये ब्रह्मा ने इनका नाम विषहरी रखा।विष्णु पुराण
विष्णु पुराण के चतुर्थ भाग में एक नागकन्या का वर्णन है जो आगे चलकर मनसा के नाम से प्रतलित हुई।
ब्रह्मवैवर्त पुराण
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अंतर्गत एक नागकन्या थी जो शिव तथा कृष्ण की भक्त थी। उसने कई युगों तक तप किया तथा शिव से वेद तथा कृष्ण मंत्र का ज्ञान प्राप्त किया जो मंत्र आगे जाकर कल्पतरु मंत्र के नाम से प्रचलित हुआ। उस कन्या ने पुष्कर में तप कर कृष्ण के दर्शन किए तथा उनसे सदैव पूजित होने का वरदान प्राप्त किया।
मंगलकाव्य
मंगलकाव्य बंगाल में 13वीं तथा 18वीं शताब्दी में लिखित काव्य है जो कई देवताओं के संदर्भ में लिखित हैं। विजयगुप्त का मनसा मंगल काव्य और विप्रदास पिल्ले का मनसाविजय (1495) मनसा के जन्म का वृत्तांत बताते हैं।
मनसाविजय के अनुसार वासुकि नाग की माता नें एक कन्या की प्रतिमा का निर्माण किया जो शिव वीर्य से स्पर्श होते ही एक नागकन्या बन गई, जो मनसा कहलाई। जब शिव ने मनसा को देखा तो वे मोहित हो गए, तब मनसा ने बताया कि वह उनकी बेटी है, शिव मनसा को लेकर कैलाश गए। माता पार्वती नें जब मनसा को शिव के साथ देखा तब चण्डी रूप धारण कर मनसा के एक आँख को अपने दिव्य नेत्र तेज से जला दिया। मनसा ने ही शिव को हलाहल विष से मुक्त किया था।
‘मनसा’ शब्द का प्रचलित अर्थ इच्छा है।
कहा जाता है कि माँ मनसा सच्चे मन वाले हर श्रद्धालु की इच्छा को पूरा करती हैं। मान्यता है कि मनसा देवी का जन्म संत कश्यप के मस्तिष्क से हुआ है। उन्हें नाग राजा वासुकी की पत्नी भी माना जाता है। हरिद्वार के चंडी देवी और माया देवी के साथ मनसा देवी को भी सिद्ध पीठों में प्रमुख माना जाता है। मनसा भगवान शंकर की कठोर तपस्या करके वेदों का अध्ययन किया और कृष्ण मंत्र प्राप्त किया, जो कल्पतरु मंत्र कहलाता है। इसके बाद देवी ने कई युगों तक पुष्कर में तप किया। भगवान कृष्ण ने दर्शन देकर वरदान दिया कि तीनों लोकों में तुम्हारी पूजा होगी। देवी की पूजा गंगा दशहरा के दिन बंगाल में भी की जाती है। कहीं-कहीं कृष्णपक्ष पंचमी को भी देवी पूजी जाती हैं। मान्यता है कि इस दिन घर के आँगन में नागफनी की शाखा पर मनसा देवी की पूजा करने से विष का भय नहीं रह जाता। मनसा देवी की पूजा के बाद ही नागों की पूजा होती है।
जाने मनसा देवी के प्रमुख मंदिर:-
*मनसा देवी मंदिर, हरिद्वार:-
यह मंदिर अत्यंत ही प्रसिद्ध है तथा हरिद्वार से 3 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ पर माता शक्तिपीठ पर स्थापित दुख दूर करतीं हैं। यहाँ 3 मंदिर हैं। यहाँ के एक वृक्ष पर सूत्र बाँधा जाता है परंतु मनसा पूर्ण होने के बाद सूत्र निकालना आवश्यक है। यह मंदिर सुबह ८ बजे से शाम ५ बजे तक खुला रहता है | दोपहर में 2 घंटे के लिए १२ से २ तक मंदिर के पट बंद कर दिए जाते है जिसमे माँ मनसा का श्रृंगार और भोग लगता है | मंदिर परिसर में एक पेड़ है जिसपे भक्त मनोकामना पूर्ति के लिए एक पवित्र धागा बांधते है | हरिद्वार में हरकी पैड़ी के पास गंगा किनारे पहाड़ी पर स्थित आस्था का केन्द्र है। ट्राम के होने से यह देवस्थान लुभावना धार्मिक पर्यटन स्थल बन गया है। दुर्गम पहाड़ियों और पवित्र गंगा के किनारे स्थित मनसा देवी का उल्लेख पुराणों में है। ‘मनसा’ शब्द का प्रचलित अर्थ इच्छा है।
कहा जाता है कि माँ मनसा सच्चे मन वाले हर श्रद्धालु की इच्छा को पूरा करती हैं। मान्यता है कि मनसा देवी का जन्म संत कश्यप के मस्तिष्क से हुआ है। उन्हें नाग राजा वासुकी की पत्नी भी माना जाता है। हरिद्वार के चंडी देवी और माया देवी के साथ मनसा देवी को भी सिद्ध पीठों में प्रमुख माना जाता है। मनसा भगवान शंकर की कठोर तपस्या करके वेदों का अध्ययन किया और कृष्ण मंत्र प्राप्त किया, जो कल्पतरु मंत्र कहलाता है। इसके बाद देवी ने कई युगों तक पुष्कर में तप किया। भगवान कृष्ण ने दर्शन देकर वरदान दिया कि तीनों लोकों में तुम्हारी पूजा होगी। देवी की पूजा गंगा दशहरा के दिन बंगाल में भी की जाती है। कहीं-कहीं कृष्णपक्ष पंचमी को भी देवी पूजी जाती हैं। मान्यता है कि इस दिन घर के आँगन में नागफनी की शाखा पर मनसा देवी की पूजा करने से विष का भय नहीं रह जाता। मनसा देवी की पूजा के बाद ही नागों की पूजा होती है।
* मनसा देवी मंदिर, पंचकूला
मां मनसा देवी नौ देवियों में से एक हैं। यह 51 शक्तिपीठों में से भी एक है। कहा जाता है कि यहां मां का मस्तक गिरा था। माता मनसा चंडीगढ़ के समीप पंचकूला में विराजमान होकर दुख दूर करतीं हैं। यहाँ नवरात्रि में भव्य मेले का आयोजन प्रतिवर्ष होता है, यह 100 एकड़ में फैला विशाल मंदिर है। मां का मंदिर चंडीगढ़ शहर के पास पंचकूला में है। मंदिर के आसपास का वातावरण बड़ा मनोरम है। इस मंदिर की व्यवस्था एक सरकारी ट्रस्ट देखता है। यह ट्रस्ट हरियाणा सरकार के अधीन है। नवरात्रि के दौरान मंदिर के ट्रस्ट के द्वारा आवास और दर्शन की उचित व्यवस्था की जाती है। तम्बू के आवास, दरी, कंबल, अस्थायी शौचालय, अस्थायी डिस्पेंसरी, मेला पुलिस चैकी और लाइनें साल के इस समय उपलब्ध होने वाली कुछ संविधाएं हैं। भक्तों के आने-जाने की व्यवस्था के लिए सख़्त कदम उठाए जाते हैं।
मां मनसा देवी नौ देवियों में से एक हैं। यह 51 शक्तिपीठों में से भी एक है। कहा जाता है कि यहां मां का मस्तक गिरा था। माता मनसा चंडीगढ़ के समीप पंचकूला में विराजमान होकर दुख दूर करतीं हैं। यहाँ नवरात्रि में भव्य मेले का आयोजन प्रतिवर्ष होता है, यह 100 एकड़ में फैला विशाल मंदिर है। मां का मंदिर चंडीगढ़ शहर के पास पंचकूला में है। मंदिर के आसपास का वातावरण बड़ा मनोरम है। इस मंदिर की व्यवस्था एक सरकारी ट्रस्ट देखता है। यह ट्रस्ट हरियाणा सरकार के अधीन है। नवरात्रि के दौरान मंदिर के ट्रस्ट के द्वारा आवास और दर्शन की उचित व्यवस्था की जाती है। तम्बू के आवास, दरी, कंबल, अस्थायी शौचालय, अस्थायी डिस्पेंसरी, मेला पुलिस चैकी और लाइनें साल के इस समय उपलब्ध होने वाली कुछ संविधाएं हैं। भक्तों के आने-जाने की व्यवस्था के लिए सख़्त कदम उठाए जाते हैं।
मनसा देवी मंदिर का निर्माण 1811-1815 के बीच मनीमाजरा के राजा गोपाल सिंह ने कराया था। मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर से 200 मीटर की दूरी पर पटियाला के महाराजा करम सिंह ने 1840 में एक और मंदिर बनवाया जिसे पटियाला मंदिर कहा जाता है।
कहा जाता है कि एक बार महाराजा को देवी सपने में आईं। उनके आदेश पर ही महाराज ने यहां भव्य मंदिर बनवाया। मंदिर में मनसा देवी की प्रतिमा तीन सिर और पांच भुजाओं वाली है। मंदिर परिसर में चामुंडा और लक्ष्मीनारायण का मंदिर है। मंदिर के परिक्रमा में भी विभिन्न देवी देवताओं की मूर्तियां बनाई गई हैं। मनसा देवी मंदिर में संस्थाओं की ओर से सालों भर भंडारा चलाया जाता है। मंदिर में श्रद्धालुओं के रहने के लिए निशुल्क आवास की सुविधा भी उपलब्ध है। इसके अलावा 200 रुपये प्रतिदिन पर सुविधायुक्त आवास भी उपलब्ध है। मंदिर प्रबंधन की ओर से श्रद्धालुओं के लिए चिकित्सालय तथा कई और सेवाएं भी संचालित की जाती हैं। यह हिमालयी आस्था और संस्कृति का प्रतीक है। हिमालय को शिव और शक्ति का निवास स्थान माना जाता है। इस मंदिर के अलावा पंचकूला में अनेक अन्य मंदिर हैं जहाँ शक्ति की पूजा की जाती है।
इस क्षेत्र से पुरातात्विक खंडहर मिले हैं जो पुराने समय में यहाँ के लोगों की पारंपरिक संस्कृति पर केंद्रित हैं। शक्तिवाद एक पंथ है जो भारत के इस भाग में बहुत प्रचलित है। अपने नाम के अनुरूप वरदान देने वाली देवी के रूप में मनसा देवी भक्तों के बीच बहुत लोकप्रिय है। इसके पुरातात्विक और पौराणिक महत्व के कारण तथा अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए आने वाले भक्तों के लिए हरियाणा सरकार ने इस मंदिर के बुनियादी ढांचे, प्रबंधन और प्रशासन में सुधार के लिए प्रयास किए हैं। आसपास की भूमि और इमारतों की देखरेख भी की जाती है। यह जगह विरासत स्थल के रूप में संरक्षित है। मंदिर की दीवारों को भित्तिचित्रों के 38 पैनलों से सजाया गया है। मेहराब और छत फूलों क चित्रों से सजी हुई हैं। हालांकि, ये बहुत कलात्मक नहीं हैं लेकिन फिर भी विभिन्न विषयों को दर्शाती हैं। मुख्य मंदिर की वास्तुकला गुंबदों और मीनारों के साथ मुग़ल वास्तुकला का प्रतिनिधित्व करती है।
कैसे पहुंचे
आप चंडीगढ़ शहर से पंचकूला की ओर जाने वाली बसों से मनसा देवी पहुंच सकते हैं। मनसा देवी का मंदिर मनी माजरा की पहाड़ियों पर स्थित है। ये चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन से भी काफी करीब है। चंडीगढ शहर और पंचकूला के किसी भी हिस्से से मनसा देवी आसानी से पहुंचा जा सकता है। चैत्र नवरात्र के समय यहां विशाल मेला लगता है। यह मंदिर चंडीगढ़ से 10कि.मी. और पंचकूला से 4कि.मी. दूर है। स्थानीय बसें और आटो रिक्शा परिवहन के साधन के रूप में आसानी से उपलब्ध होती हैं। नवरात्रि के दौरान विशेष बसें चलाई जाती हैं। हवाईमार्ग तथा रेलमार्ग से आने पर चंडीगढ़ गंतव्य स्थान है।
धन्यवाद!
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