शुभो महालया !
महालया के शुभ अवसर पर आप सभी देशवाशियों को CKP LiVE की ओर से ढेर सारीं शुभकामनायें !!!!!!!!!!
आगे पढ़े.. शुभो महालया से क्या अभिप्राय है ? माँ दुर्गा को महिषासुरमर्दिनी क्यों कहा जाता है ?...
महालया वह पावन अवसर है, जो दुर्गा पूजा के पहले महिषासुरमर्दिनी, जगत जननी मां दुर्गा के आगमन की सूचना देता है।
"मांगलिक पर्व दुर्गा पूजा उत्सव हमारे जीवन में उल्लास, शांति और समृद्धि लेकर आए।
आज महालया, जागो तुमि जागो, जागो दुर्गा, जागो दश पहरणधारिणी...."
महालया वह पावन अवसर है, जो दुर्गा पूजा के पहले महिषासुरमर्दिनी, जगत जननी मां दुर्गा के आगमन की सूचना देता है।
मां के आने की सूचना पाकर सभी लोग आनंद, उमंग, प्रसन्नता और उत्साह से झूमने लगते हैं।
मां के आगमन से 'सोनार आलोय पृथिवी' जाग जाता है, चारों ओर 'आलोर वंशी' बजने लगती है और मां की पगध्वनि से समूचा विश्व भक्तिमय हो उठता है, आनंद से भर जाता है।
जागो तुमि जागो एक प्रकार का आह्वान है, मां दुर्गा को धरती पर बुलाने का।
इस अवसर पर विशेष प्रकार के बांग्ला भक्तिमय संगीत आगमनी के द्वारा मां दुर्गा की स्तुति की जाती है।
सर्व शक्ति स्वरूपिणी भगवती दुर्गा बंगाली संप्रदाय के घर की बेटी हैं, इसलिए बंगाली शाक्त पदावली के कवियों ने मां दुर्गा के ऐश्वर्यमयी महाशक्ति रूप से भी ज्यादा कन्या रूप में मानविक सुर के पद की रचना की है।
बंगाल के लोगों में मां दुर्गा को लेकर जो लौकिक कथा प्रचलित है, उसमें मां दुर्गा का परिचय गौरी या उमा के रूप में दिया गया है।
पर्वतराज हिमालय और मेनका की बेटी बताया गया है।
उमा को लेकर मां मेनका सदैव चिंतित रहती हैं, क्योंकि जिसके साथ उमा का विवाह हुआ है, वह सदाशिव श्मशान-मसान में घूमते हैं, ऐसे व्यक्ति के साथ बेटी कैसे रहेगी, यही सोच कर मां मेनका महालया की रात दु:स्वप्न देखती हैं।
वह हिमालय से कहती हैं :-
कुस्वप्न देखेछि गिरि, उमा आमार श्मशानवासी,
त्वराय कैलाशे चल, आन उमा सुधाराशि॥
इसके बाद गिरिराज अपनी बेटी उमा को लाने कैलास जाते हैं, वहां जाकर उमा से बोलते हैं :-
चल माँ चल माँ गौरी गिरिपुरी शून्यागार,
माँ होये जानोतो उमा ममता पिता मातार॥
तब माँ गौरी अपने पति भगवान शिव की अनुमति से अपने सभी पुत्र-पुत्रियों के साथ तीन दिन के लिए मायके आती हैं।
कन्या के आगमन पर गिरिपुर में आनंद-उत्सव मनता है।
इसी लौकिक परंपरा के आधार पर बंगाल में पांच दिन तक दुर्गापूजा होती है।
महालया के दिन रेडियो पर प्रसारित होनेवाला महिषासुरमर्दिनी चंडी पाठ भारतीय संस्कृति में एक अतुलनीय रचना है, इसका कथानक काफी प्रभावी है।
राक्षसराज महिषासुर का जुल्म देवताओं के विरुद्ध बढ़ता ही जा रहा था।
उसके जुल्मों से त्रस्त देवता भगवान विष्णु के पास जाकर त्राहिमाम करने लगे।
तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश की त्रिशक्ति ने अपनी सम्मिलित शक्ति से दस भुजाओं वाली शक्ति का निर्माण किया, जिसे जगत जननी मां दुर्गा कहा गया।
उनमें विश्व की सारी शक्तियां निहित थीं, फिर अन्य देवताओं ने उन्हें अपनी शक्तियों और अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित किया।
किसी योद्धा की तरह सुसज्जित होकर मां सिंह पर सवार होकर महिषासुर से संग्राम करने चलीं।
घमासान युद्ध के बाद मां ने त्रिशूल से महिषासुर का वध कर दिया।
शक्ति के समक्ष समस्त जगत नतमस्तक हुआ और मां का मंत्रोच्चार करने लगे:-
या देवी सर्वभुतेषु, शक्तिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै,नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।
महालया के दिन जैसे ही रेडियो पर महिषासुरमर्दिनी चंडी पाठ का प्रसारण होता है, वातावरण शंख की ध्वनि और जागो तुमि जागो, जागो दुर्गा, जागो दश, पहरणधारिणी से गुंजायमान हो जाता है।
सभी मां का आवाहन करते हैं :-
ऊँ नतेभ्य: सर्वदा भक्त्या चंडिके दुरितापहे।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विशो जेहि॥
ऊँ पुत्रान देहि धनं देहि सर्व कामाश्च देहि मे।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विशो जेहि॥
विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं विस्वात्मिका धारयसीति विश्वम्।
विश्वेशवन्द्या भवती भवन्ति विश्वाश्रया ये त्वयि भक्तिनम्राः॥
विश्वेश्वरि, तुम विश्व का पालन करती हो, तुम विश्वरूपा हो, इसलिए संपूर्ण विश्व को धारण करती हो।
तुम भगवान विश्वनाथ की भी वंदनीया हो, जो लोग भक्तिपूर्वक तुम्हारे सामने मस्तक झुकाते हैं, वे संपूर्ण विश्व को आश्रय देनेवाले होते हैं।
आदि शक्ति दुर्गा, यह दुर्गति का नाश करने वाली अतुल्य शक्ति का नाम है।
'दु' का अर्थ अहंकार है, तो कठिनाई, बुराई और कष्ट भी।
'ग' का अर्थ वह प्रकाश, ईश्वरीय ज्योति है, जो कष्टों, दुःखों और पापों को हरने वाली है।
'अ' का अर्थ परमात्मा, अविनाशी-अजन्मा ईश्वर व उनकी शक्ति है तथा रेफ यानी 'र्' का अर्थ पहले से दूसरे की ओर प्रवाहित होती शक्ति, ऐश्वर्य, ज्ञान, विज्ञान की अधिष्ठात्री देवियां हैं।
महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, इन्हीं तीनों महाशक्तियों का सम्मिलित रूप हैं भगवती दुर्गा।
यही पूर्ण ब्रह्मस्वरूपिणी, नारायणी, विष्णुमाया, शिवस्वरूपा है।
इनके बिना तो त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और शिव भी अपूर्ण है।
विश्व का, सृष्टि के चैतन्य का आधार शक्ति यही हैं, इनकी स्तुति से मनुष्य सद्यः विशिष्ट शक्ति लाभ करता है।
सर्वशक्ति दात्री मां का ध्यान-वंदन करने से मनुष्य का अंतर्मन दिव्य आलोक से प्रकाशित हो जाता है।
मां पग-पग पर हमारी रक्षा करती हैं...
हम विचार इसलिए कर पाते हैं कि मां बुद्धिरूप होकर हमें विचार करने में सहायता देती हैं।
"या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता" दिनभर काम करते-करते जब हम थक जाते हैं, तब मां नींद बनकर हमारे पास आती हैं, रोज आती है, बिना बुलाये स्वयं आती हैं।
मां ने हमें शरीर दिया है, इसलिए मां चाहती हैं कि हम शरीर की रक्षा करें, अतः मां क्षुधारूप से इस शरीर की रक्षा करने में सहायता करती हैं।
मां को हम इतने प्यारे हैं कि वह एक क्षण भी हमसे अलग रहना नहीं चाहतीं, सदा हमारे साथ हमारी छाया बनी फिरती हैं।
हम जो कुछ भी कार्य करते हैं, मां शक्ति बनकर हमें उसे पूरा करने में सहायता करती हैं।
इस प्रकार कल्याणमयी मां दुर्गा अहर्निश हमारे हितसाधन में संलग्न रहती हैं।
मां तरह-तरह के रूप बनकर हमें सुखी संपन्न बनाने के लिए तत्पर रहती हैं।
इसलिए मां के आगमन की सूचना मात्र से समस्त प्रकृति और जीव-जगत नये उत्साह, उमंग और खुशी से झूम उठते हैं।
आइए, मां के आगमन पर महालया के इस पावन अवसर हम सभी मिल कर उनकी स्तुति करें....
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोअखिलाय।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥
By
Rajni Rk
इनके बिना तो त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और शिव भी अपूर्ण है।
विश्व का, सृष्टि के चैतन्य का आधार शक्ति यही हैं, इनकी स्तुति से मनुष्य सद्यः विशिष्ट शक्ति लाभ करता है।
सर्वशक्ति दात्री मां का ध्यान-वंदन करने से मनुष्य का अंतर्मन दिव्य आलोक से प्रकाशित हो जाता है।
मां पग-पग पर हमारी रक्षा करती हैं...
हम विचार इसलिए कर पाते हैं कि मां बुद्धिरूप होकर हमें विचार करने में सहायता देती हैं।
"या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता" दिनभर काम करते-करते जब हम थक जाते हैं, तब मां नींद बनकर हमारे पास आती हैं, रोज आती है, बिना बुलाये स्वयं आती हैं।
मां ने हमें शरीर दिया है, इसलिए मां चाहती हैं कि हम शरीर की रक्षा करें, अतः मां क्षुधारूप से इस शरीर की रक्षा करने में सहायता करती हैं।
मां को हम इतने प्यारे हैं कि वह एक क्षण भी हमसे अलग रहना नहीं चाहतीं, सदा हमारे साथ हमारी छाया बनी फिरती हैं।
हम जो कुछ भी कार्य करते हैं, मां शक्ति बनकर हमें उसे पूरा करने में सहायता करती हैं।
इस प्रकार कल्याणमयी मां दुर्गा अहर्निश हमारे हितसाधन में संलग्न रहती हैं।
मां तरह-तरह के रूप बनकर हमें सुखी संपन्न बनाने के लिए तत्पर रहती हैं।
इसलिए मां के आगमन की सूचना मात्र से समस्त प्रकृति और जीव-जगत नये उत्साह, उमंग और खुशी से झूम उठते हैं।
आइए, मां के आगमन पर महालया के इस पावन अवसर हम सभी मिल कर उनकी स्तुति करें....
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोअखिलाय।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥
By
Rajni Rk
0 Comments